लेखनी कविता -फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर - ग़ालिब
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर / ग़ालिब
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
है दाग़-ए-इश्क़ ज़ीनत-ए-जेब-ए-कफ़न हुनूज़
है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्ता पर
हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कोहन हुनूज़
मै-ख़ाना-ए-जिगर में यहाँ ख़ाक भी नहीं
ख़म्याज़ा खींचे है बुत-ए-बे-दाद-फ़न हुनूज़
जूँ जादा सर-ब-कू-ए-तमन्ना-ए-बे-दिली
ज़ंजीर-ए-पा है रिश्ता-ए-हुब्बुल-वतन हुनूज़